सफ़र-ए-आगही By Nazm << क्या लिखूँ वादी-ए-सिंध >> अजीब है दश्त-ए-आगही का सफ़र वफ़ा की रिदा में लिपटी बरहना क़दमों से चल रही हूँ तपे हुए रेगज़ार में भी मगर चुभन है न पाँव में कोई आबला है थकन का नाम-ओ-निशाँ नहीं है Share on: