सग-ए-हम-सफ़र और मैं वहाँ आ गए हैं जहाँ ख़त्म है काएनात यहाँ से नशेब-ए-ज़मान-ओ-मकाँ का अगर जाएज़ा लें तो लगता है जैसे धुँदलकों के उस पार जो कुछ भी है ठीक है हस्ब-ए-मामूल है मिरा नाम शेनान्डोरा है मैं कितनी सदियों से उस बहर-ए-ज़ख़्ख़ार में ख़ेमा-ज़न था जो मव्वाज सम्त-ए-दिगर में रहा एक दिन दफ़-ए-आसेब ओ रफ़-ए-बला के लिए कुछ पुर-असरार फ़िक़्रों की गर्दान करता हुआ जादा-ए-ख़ौफ़ पर गामज़न था मैं अपने शबिस्ताँ की जानिब कि इक लर्ज़िश-ए-ना-गहाँ से गुज़रना पड़ा तो अंधे ज़मानों की सहरा-नवर्दी के आख़िर में वो एक तारीक लम्हा था जब सग-ए-हम-सफ़र और मैं माँदा ओ गुरसना यहाँ इस इलाक़े में वारिद हुए और अंधेरे में कुछ फ़ासले पर तिरी रौशनी देख कर रक़्स करने लगे सग-ए-हम-सफ़र और मैं सग-ए-हम-सफ़र और मैं