सहर By Nazm << टूटे शीशे की आख़िरी नज़्म घर >> वो किसी भी हाल में अपने होंटों पर सुर्ख़ी लगाना नहीं भूलती और मैं कंघी करना आज फैली हुई सुर्ख़ी और बिखरे हुए बाल अजीब ही मंज़र पेश कर रहे हैं और पस-मंज़र में अज़ान हो रही है Share on: