हवा की सुरमई रथ पर मधुर, धीमे सुरों में बोलती बारिश मिरे विज्दान का पहला जज़ीरा है वो अक्सर रात के पिछले पहर कोई पुराना गीत गाती है मिरे तन की प्यासी रेत में ख़ुशबू मिलाती है कभी अपनी महकती नर्म पोरों से मिरा शाना हिलाती है मिरी नज़्मों के मिसरों में तरन्नुम छोड़ जाती है वो गूँगे देस की वीरान गलियों में ''सर-ए-बाज़ार मी-रक़सम'' का इल्हामी वज़ीफ़ा गुनगुनाती है बका-ए-यार की ख़ातिर फ़ना तस्लीम करती है... फ़ज़ा में कोंपलें तक़्सीम करती है! दिलों के आस्तानों पर धमालें डालती... मिरी पहली सहेली है...