गर तअ'ल्लुक़ ही तर्क करना था मुझ से फिर प्यार क्यों किया तू ने मुस्कुराती लजाती आँखों से एक इक़रार क्यों किया तू ने मैं ने कब तेरा प्यार माँगा था मैं ने कब तेरी आरज़ू की थी मैं तो ख़ामोश था फ़लक की तरह मैं ने कब तेरी जुस्तुजू की थी तू ने ख़ुद मुस्कुराती आँखों से मुझ को आवाज़ दे के चौंकाया मेरे नाज़ुक ना-आश्ना दिल को हुस्न का साज़ दे के चौंकाया अब वो क़स्में वो अहद वो वा'दे जाने क्या हो गए ख़ुदा जाने वो जुनूँ-ख़ेज़ आतिशी जज़्बात अब कहाँ खो गए ख़ुदा जाने जाने क्यों अब तिरी हसीं आँखें मेरी जानिब कभी नहीं उठती जाने क्यों अब हसीन गालों पर फूल की पंखुड़ियाँ नहीं खिलती गर तअ'ल्लुक़ ही तर्क करना था काश पहले ही कह दिया होता आज मैं अपनी ज़िंदगानी से इस क़दर दूर न हुआ होता