सलीक़ा By Nazm << तख़्लीक़ तराना-ए-मिल्ली >> देवता है कोई हम में न फ़रिश्ता कोई छू के मत देखना हर रंग उतर जाता है मिलने-जुलने का सलीक़ा है ज़रूरी वर्ना आदमी चंद मुलाक़ातों में मर जाता है Share on: