उसे जिस ने तुम्हें बुला लिया है समुंदरों के मुसाफ़िरो उसे जा के मेरा सलाम कहना मुसाफ़िरो जो सफ़र की सारी सऊबतों से गिराँ-बहा जब तुम्हारे और मिरे सफ़ीने का नाख़ुदा दो-जहाँ के हमा-ज़ी-हयात ये दिन ये रात भी जिस के गिर्द रुके हुए हैं जहाँ ज़मीं पे झुके हुए हैं कुलाह तैरते बादलों के जो नूर है हमा-नूर है जहाँ सर झुका के वो जिस्म चलते हैं जिन को आग की हिद्दतों ने जनम दिया जिन्हें देख सकता नहीं कोई वो जो भेद हैं वहाँ वो मिलेगा तुम्हें ज़रूर हर इक से मिलता है दूर दूर से आते हैं देखने उसे देखने वो हर इक को देता है ज़िंदगी वो उतार लेता है बोझ गुज़रे हुए दिलों का वो आने वाली रुतों के चेहरे निखार देता है लौट आते हैं लोग जो उसे देख कर उन्हें लोग आते हैं देखने उसे जा कर मेरा सलाम कहना मुसाफ़िरो तुम्हें पानियों की रवानियों का सुकूँ मिले