सन्नाटा By Nazm << उस रोज़ तुम कहाँ थे यादों की ज़ंजीरें >> कोई धड़कन न कोई चाप न संचल न कोई मौज न हलचल न किसी साँस की गर्मी न बदन ऐसे सन्नाटे में इक-आध तो पत्ता खड़के कोई पिघला हुआ मोती कोई आँसू कोई दिल कुछ भी नहीं कितनी सुनसान है ये राहगुज़र कोई रुख़्सार तो चमके कोई बिजली तो गिरे Share on: