सारी दुनिया सौ रही है और तू बेदार है दूर है राहत से और लज़्ज़त-कश-ए-आज़ार है ले रहा है ज़र्रे ज़र्रे से तू इबरत का सबक़ या'नी हर हर गाम पर होता है सीना तेरा शक़ तेरी नज़रें देखती हैं इंतिहा आग़ाज़ में महव हो जाता है जब तू इंकिशाफ़-ए-राज़ में ज़ाहिरी रंज-ओ-अलम से दिल तिरा बेगाना है इंकिशाफ़-ए-राज़-ए-यज़्दानी का तो दीवाना है मुज़्तरिब होती है तेरी रूह लहरें देख कर तू समझता है उन्हीं से क्या है अंजाम-ए-बशर देख कर फूलों को रोता है कभी तू ज़ार ज़ार वज्द में करता है अपना ही गरेबाँ तार तार क़तरा-ए-शबनम हैं गोया इक किताब-ए-ज़िंदगी देखता है जिस को तो पढ़ पढ़ के ख़्वाब-ए-ज़िंदगी तो है अक्कास-ए-अज़ल फ़ितरत में तेरी दर्द है गो ब-ज़ाहिर ख़ुश है लेकिन लब पे आह-ए-सर्द है तू ने फ़ितरत के सबक़ को फिर से दोहराया यहाँ आश्कारा कर दिए जो राज़ थे अब तक निहाँ फ़ितरत-ए-ख़्वाबीदा को बेदार कर देता है तू ज़िंदगी से ऐश की बेज़ार कर देता है तू मस्त हो जाता है तू अब्र-ए-सियह को देख कर चशमकों से बर्क़ की लेता है तू क्या क्या असर ऐ कि तेरी ज़ात से है रौनक़-ए-बज़्म-ए-जहाँ ऐ कि हस्ती है तिरी सरमाया-दार-ए-कुन-फ़काँ ऐ कि तिरी ज़ात से है रौनक-ए-बज़्म-ए-शुहूद ऐ कि तेरे रंग से हर शय में है रंग-ए-नुमूद तू न होता तो न होता ये जहान-ए-रंग-ओ-बू तू न होता तो न होती हुस्न की कुछ आबरू तू न होता तो न होते मुन्कशिफ़ राज़-ए-हयात तू न होता तो न होता नक़्श-ए-फ़ानी को सबात