मैं जहाँ था वहाँ तीरगी थी ख़मोशी थी अफ़्सुर्दगी थी मिरे कान नग़्मों से महरूम थे सिसकियाँ मेरे होंटों की मीरास थीं मेरी आँखें किसी सैल-ए-पुर-नूर की मुंतज़िर थीं मिरी ज़िंदगी राख का ढेर थी मैं यहाँ आ गया इस तरह ख़ुल्द में उस मुसलसल अज़िय्यत से काहिश से बचने की ख़ातिर कि जिस से फ़क़त एक मैं ही नहीं मेरे जैसे कई और भी जाँ-ब-लब थे तिरा ख़ुल्द मेरे लिए मेरे जैसे कई दूसरों के लिए रौशनी नग़्मगी सरख़ुशी की अलामत था ये! मैं जहाँ हूँ वहाँ तीरगी है ख़मोशी है अफ़्सुर्दगी है मिरे कान नग़्मों से महरूम हैं सिसकियाँ मेरे कानों की मीरास हैं मेरी आँखें किसी सैल-ए-पुर-नूर की मुंतज़िर हैं मेरी ज़िंदगी राख का ढेर है!