हर एक साँस में सरगोशियाँ हैं नौहों की किसी भी लब पे कोई जाँ-फ़ज़ा तराना नहीं सिमट सिमट गई अंगड़ाइयों की पहनाई हिकायत-ए-ग़म-ए-दौराँ कोई फ़साना नहीं जो ज़ुल्म हम पे हुआ है अब उस का ज़िक्र ही क्या यहाँ पे हम ही सितम-ख़ुर्दा-ए-ज़माना नहीं शिकस्त-ए-साज़-ए-मोहब्बत से सोज़िश-ए-ग़म से हर एक आरिज़-ए-गुलगूँ से शबनम-आलूदा मआल-ए-अहद-ए-वफ़ा है फ़िराक़-ए-दीदा-ओ-दिल नक़ीब-ए-दौर-ए-गुज़िश्ता है दौर-ए-मौजूदा