बाज़ की तरह झपटा वो बरहम फ़रिश्ता उस के बालों को मुट्ठी में जकड़े हुए उस से बोला मैं तुम्हारा फ़रिश्ता हूँ सुन लो अपने सारे फ़राएज़ तुम अंजाम दोगे मेरी मर्ज़ी है ये सियह-कारों ग़रीबों अहमक़ों से हमेशा प्यार करना तुम हमेशा प्यार करना ताकि जब आएँ इंसानियत के मसीहा फ़त्ह का सुर्ख़ क़ालीन उन के लिए अपने अख़्लाक़ से तुम बुनो इस से पहले कि तुम ख़ुद से बेज़ार हो उस की अज़्मत से दिल को मुनव्वर करो औज-ए-इशरत है ये औज-ए-इशरत है ये देर-पा देर-पा देर-पा देर-पा दर्स-ए-उल्फ़त दिल धड़कने से हिचकिचाए सूरत-ए-दो-दिसा ये गुरेज़ाँ नीली तारीकियों से शगुफ़्ता क़हक़हे मारती मैं जो निकली मेरे ख़्वाबों के बेदार चेहरे सारे साहिल पे नौहा-ख़्वाँ हैं