अज़ीज़ माँ मिरी हँसमुख मिरी बहादुर माँ तमाम जौहर-ए-फ़ितरत जगा दिए तू ने मोहब्बत अपने चमन से गुलों से ख़ारों से मोहब्बतों के ख़ज़ाने लुटा दिए तू ने बना बना के मिटाए गए नुक़ूश-ए-अमल तिरे बग़ैर मुकम्मल न हो सकी तस्वीर वो ख़्वाब झांसी की रानी को जिस ने चौंकाया तिरा जिहाद-ए-मुसलसल उसी की है ता'बीर उसे हयात का सोला सिंगार कहते हैं तिरी जबीं पे हैं कुछ सिलवटें भी टीका भी नज़र में जज़्ब-ए-यक़ीं दिल में सोज़-ए-आज़ादी दहकता फूल भी है तू महकता शो'ला भी ज़रा ज़मीन को मेहवर पे घूम लेने दे समाज तुझ से तिरा सोज़-ओ-साज़ मांगेगी जमाल सीखेगा ख़ुद-ए'तिमादियाँ तुझ से हयात-ए-नौ तिरे दिल का गुदाज़ मांगेगी