ऐ मिरे देस में बस्ते हुए अच्छे लोगो ख़ुद ही सोचो कि सज़ा जैसी ये तन्हाई है जिस जगह फूल महकते थे वफ़ाओं के कभी इन फ़ज़ाओं में अटल रात की गहराई है इन अँधेरों से परे आज भी इस दुनिया में लोग ख़ुश-हाल मोहब्बत से रहा करते हैं आज भी शाम ढले सुख की हसीं वादी में लोग पेड़ों के तले रोज़ मिला करते हैं रोज़ उठती है महक उन के हसीं आँगन से सादगी जीने का सामान हुआ करती है उन की आँखों में महकते हैं गुलाबों के चमन ज़िंदगी कैफ़ का उन्वान हुआ करती है ऐ मिरे देस में बस्ते हुए अच्छे लोगो ज़िंदगी कौन से मंज़र में गुज़ारी तुम ने ख़ाक और ख़ून से लिथड़ी हुई मंज़िल की तलब कौन से क़र्ज़ की ज़ंजीर उतारी तुम ने यूँ उलझते हो भटकते हुए आहू की तरह कैसे आशोब में इक उम्र गँवा दी तुम ने ख़ारज़ारों से लिखी दिल पे कहानी दुख की कौन सी शब की सियाही को जिला दी तुम ने ऐ मिरे देस में बस्ते हुए अच्छे लोगो ख़ुद को पहचान के इस बाब में रुस्वा न करो ज़िंदगी सिर्फ़ मोहब्बत का हसीं तोहफ़ा है इस हसीं ख़्वाब की ता'बीर का सौदा न करो