झाँकता है तिरी आँखों से ज़मानों का ख़ला तेरे होंटों पे मुसल्लत है बड़ी देर की प्यास तेरे सीने में रहा शोर-ए-बहाराँ का ख़रोश अब तो साँसों में न गर्मी है न आवाज़ न बास तू ने इक उम्र से बाज़ू भी नहीं फैलाए फिर भी बाँहों को है सदियों की थकन का एहसास तेरे चेहरे पे सुकूँ खेल रहा है लेकिन तेरे सीने में तो तूफ़ान गरजते होंगे बज़्म-ए-कौनैन तिरी आँख में वीरान सही तिरे ख़्वाबों के महल्लात तो समझे होंगे गरचे अब कोई नहीं कोई नहीं आएगा फिर भी आहट पे तिरे कान तो बजते होंगे वक़्त है नाग तिरे जिस्म को डसता होगा यख़ कर तुझ को हवाएँ भी बिफरती होंगी सब तिरे साए को आसेब समझते होंगे तुझ से हम-जोलियाँ कतरा के गुज़रती होंगी कितनी यादें तिरे अश्कों से उभरती होंगी ज़िंदगी हर नए अंदाज़ को अपनाती है ये फ़रेब अपने लिए जाल नए बुनता है रक़्स करती है तिरे होंटों पे हल्की सी हँसी और जी को कोई रूह की तरह धुनता है लाख पर्दों में छुपा शोर-ए-अज़िय्यत लेकिन दिल तिरे दिल के धड़कने की सदा सुनता है तेरा ग़म जागता है दिल के निहाँ-ख़ानों में तेरी आवाज़ से सीने में फ़ुग़ाँ पैदा है तेरी आँखों की उदासी मुझे करती है उदास तेरी तन्हाई के एहसास से दिल तन्हा है जागती तो है तो थक जाती है आँखें मेरी ज़ख़्म जलते हैं तिरे दर्द मुझे होता है