कौन है जिस की सिसकती हुई फ़रियादों ने मेरे एहसास के हर तार में लर्ज़िश भर दी किस की आवाज़ से लर्ज़ां है हर इक तार-ए-हयात किस की आहों ने मिरे ख़ून में सोज़िश भर दी हाँ वही जिस ने कभी रात के सन्नाटे में अपने अरमानों का इक ख़्वाब सजा रक्खा था जिस ने आँधी के सनकते हुए झोंकों में नदीम इक चराग़-ए-शब-ए-उम्मीद जला रखा था उस की दुनिया में गरजते रहे हालात के अब्र उस के आकाश पे छाया किए काले बादल सर उठाए हुए हँसता हुआ तूफ़ानों पर उस के सपनों का बनाया हुआ वो रंग-महल अब भी उस के रग-ओ-पै में वही जौलाँ है लहू जिस के शो'लों से दहक उठते हैं शाही ऐवाँ उस के सुलगे हुए जज़्बों में वो गर्मी है कि आज आमरियत के कलेजे से निकलता है धुआँ