घर लौटा सूरज बेचारा धीरे धीरे फैल गया हर सू अँधियारा धीरे धीरे माँद हुई रंगीन शफ़क़ की सारी शोख़ी धुआँ हुआ वो मंज़र प्यारा धीरे धीरे सूँघ लिया कल वादी को इक गहरी चुप ने दूर कहीं गाए बंजारा धीरे धीरे मंदिर में नाक़ूस बजाता झीनो झीनो मस्जिद में गूँजे नक़्क़ारा धीरे धीरे आन रहा कोठे के ऊपर चलते चलते खोया खोया चाँद हमारा धीरे धीरे बादल पीछे सुलग रहा है मीठे मीठे नील गगन में शाम का तारा धीरे धीरे माँझी गाए गाता जाए हैय्या हैय्या लो कश्ती ने छुआ किनारा धीरे धीरे निन्दिया आई सपने लाई चोरी चोरी सोया 'तारिक़' राज दुलारा धीरे धीरे