मुझे कुछ नहीं मा'लूम क्या चाहती हो तुम मुझ से मेरे पास है क्या जो मैं दे सकता हूँ किसी को तब्ल-ओ-अलम है पास अपने न मुल्क-ओ-माल और फिर कोई बहुत ख़ास चीज़ ही होनी चाहिए तुम्हें नज़र करने को तो क्या नहीं है तुम्हारे पास पहले से हुस्न ऐसा कि ख़ुदा भी ख़ुश हो गया होगा तुम्हें बना कर रौनक़ सी लग जाती है बैठ जाती हो जहाँ चलती हो तो साथ चलें सर्व-ओ-सनोबर ऊपर से पाया है ज़ेहन-ए-रसा मैं तो अज़ल से मरता आया हूँ हुस्न और दानिश के इम्तिज़ाज पर महज़ ख़ूब-सूरत औरत कभी न लुभा सकी मुझे न ही मुतअस्सिर कर सकी मुझे कम-शक्ल दानिश-वरी मैं अक्सर कहता हूँ तुम में ख़ुदा ने जम्अ' कर दिए हैं चाँद और सूरज दास्तानों से मावरा चंदे आफ़्ताब चंदे महताब कोई है तो तुम और फिर तुम्हारी आवाज़ पत्थरों को पिघला देने वाला गुदाज़ है इस में बोलती हो तो चराग़ से जल उठते हैं महफ़िल में क्यूँ शर्मिंदा करती हो ये कह कर मुझे कि तुम्हें ज़रूरत है मेरी याद आया एक रोज़ कहा था तुम ने हर किसी को एक शाना चाहिए जिस पर सर रख के रो सके वो और फ़िक्र न हो कि मज़ाक़ उड़ाया जाएगा इस का या बनाया जाएगा इस बात का बतंगड़ लेकिन मेरी जान ऐसा कौन सा दिख है जो नौबत आ गई रोने की क्या कहते हैं रोएँ तुम्हारे दुश्मन गो मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं लेकिन मैं जो हूँ रोने के लिए मेरे शाने पर सर रख कर रोईं अगर तुम तो तुम्हारे आँसू न पोंछ सकूँगा मैं मैं तो ख़ुद बह जाऊँगा आँसुओं में मुझे तो इस ख़याल ही से रोना आ रहा है कि तुम्हारी आँखों में भरे हों आँसू तुम्हें सच-मुच रोता देख कर क्या हाल होगा मेरा हाँ एक सूरत हो सकती है अलबत्ता तुम रो लो मेरे शाने पर सर रख कर और मैं रो लूँ तुम्हारे शाने पर सर रख कर क्या ये मुमकिन है शाना-ब-शाना