शनाख़्त By Nazm << रौशनाई इंतिज़ार >> हर एक क़तरा समुंदरों में समा गया है वजूद अपना गँवा चुका है इसी यक़ीं पर कि अब वो क़तरे से इक समुंदर की बे-करानी में ढल गया है मगर यहाँ है बहुत अकेला जो एक क़तरा वजूद अपना सँभाल कर मुस्कुरा रहा है कि उस के अंदर कई समुंदर समा गए हैं Share on: