साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गया लहरों से खेलता हुआ लहरा के पी गया बे-कैफ़ियों के कैफ़ से घबरा के पी गया तौबा को तोड़-ताड़ के थर्रा के पी गया ज़ाहिद! ये तेरी शोख़ी-ए-रिन्दाना देखना रहमत को बातों बातों में बहला के पी गया सर-मस्ती-ए-अज़ल मुझे जब याद आ गई दुनिया-ए-ए'तिबार को ठुकरा के पी गया आज़ुर्दगी-ए-ख़ातिर-ए-साक़ी को देख कर मुझ को ये शर्म आई कि शर्मा के पी गया ऐ रहमत-ए-तमाम मिरी हर ख़ता मुआफ़ मैं इंतिहा-ए-शौक़ में घबरा के पी गया पीता बग़ैर इज़्न ये कब थी मिरी मजाल दर-पर्दा चश्म-ए-यार की शह पा के पी गया उस जान-ए-मय-कदा की क़सम बारहा 'जिगर' कुल आलम-ए-बसीत पे मैं छा के पी गया