सोलन की चोटियों से झंडी हिला रही है ग़ुस्से में बे-तहाशा सीटी बजा रही है देखो वो आ रही है शिमले की रेल-गाड़ी दो इंजनों के मुँह से शो'ले निकल रहे हैं दो नाग मिल के गोया दोज़ख़ उगल रहे हैं आँखें दिखा रही है शिमले की रेल-गाड़ी सुनसान घाटियों पर ऊँची पहाड़ियों में पथरीली चोटियों पर टीलों में झाड़ियों में लहराती आ रही है शिमले की रेल-गाड़ी लोहे की एक नागिन बल खा रही हो जैसे और ऊँची चोटियों पर लहरा रही हो जैसे इस तरह आ रही है शिमले की रेल-गाड़ी बन-बासियों को क्या क्या दिल शाद कर रही है सुनसान जंगलों को आबाद कर रही है बस्ती बसा रही है शिमले की रेल-गाड़ी निकली सुरंग से यूँ जूँ बिल से नाग निकले चमकी सिरे पे जैसे भट्टी से आग निकले क्या गुल खिला रही है शिमले की रेल-गाड़ी