मुट्ठी भर ख़ाक से ज़ीस्त का सामान रेत के तूदे पर शीशे का मकान जो बन जाए तो मकीनों के धड़कते दिल ख़ौफ़ से लर्ज़ा-ओ-हिरासाँ रहें हर पल कि पूरब से आई आँधी या पच्छिम से पत्थर की ज़र्ब चहार-जानिब चंगेज़-ओ-हलाकू के जा-नशीं अम्न-ओ-शांति के पर्दों में हलाकत की बातें जिन से लरज़ जाएँ पहाड़ों के परत कमज़ोर हाथ दुआओं के लिए उठते हुए नई तहज़ीब में ख़ुद को तन्हा देख कर कि पूरब से आई आँधी या पच्छिम से पत्थर की ज़र्ब मुट्ठी भर ख़ाक से ज़ीस्त का सामान रेत के तूदे पर शीशे का मकान