अब शोर थमा तो मैं ने जाना आधी के क़रीब रो चुकी है शब गर्द को अश्क धो चुकी है चादर काली ख़ला की मुझ पर भारी है मिस्ल-ए-मौत शहपर है साँस को रुकने का बहाना तस्बीह से टूटता है दाना मैं नुक़्ता-ए-हक़ीर आसमानी बे-फ़स्ल है बे-ज़माँ है तू भी कहती है ये फ़लसफ़ा-तराज़ी लेकिन ये सनसनाती वुसअत इतनी बे-हर्फ़ ओ बे-मुरव्वत आमादा-ए-हर्ब-ए-ला-ज़मानी दुश्मन की अजनबी निशानी