सीना-ए-ख़्वाब खुले जिस तरह प्यार में डूबी हुई आँखों पे लरज़ती हुई पलकों का नशा खुलता है जिस तरह बंद किताबों पे किसी फूल के खुलने का गुमाँ खुलता है जिस तरह हाथ की पोरों पे कभी पहले पहले से किसी तजरबा-ए-लम्स-ए-मोहब्बत का असर खुलता है सीना-ए-ख़्वाब खुले सीना-ए-ख़्वाब खुले और में देखूँ वो कम-आसार जवानी का ख़ुमार वही हैरत जिसे मैं ने फ़क़त एक साँस की डोरी में पिरो लेने की ख़्वाहिश की थी वो तज़ब्ज़ुब कि जिसे कम-सिन-ओ-कम-ख़्वाब निगाहों के भरोसे ने गुलाब और चमेली की महक बख़्शी थी मुर्तइश होंटों पे मौहूम तबस्सुम का वो एहसास जिसे हर्फ़-ओ-आवाज़ बग़ैर का'बा-ए-दिल ने तिरे चेहरा-ए-गुलफ़ाम पे मबऊस किया और फिर मेरी निगाहों की तरफ़ तेरे आग़ाज़ को बेदार किया ऐ सुख़न-साज़ निगाहों वाले वक़्त ने उम्र-ए-गुज़िश्ता के कई बाब लिखे और हर बाब की दहलीज़ किसी ख़्वाब-ए-मुक़फ़्फ़ल की तरह गुम-सुम है कोई दस्तक कोई आवाज़ कोई हर्फ़-ए-सबा कोई तदबीर कि इस लम्हा-ए-मौजूद के मर जाने से पहले पहले काश इस ख़्वाब-ए-मुक़फ़्फ़ल का भी सीना खुल जाए और मैं देख सकूँ तेरे मौहूम तबस्सुम की कहानी का हवाला क्या था और अब मुझ से गुनहगार-ए-मोहब्बत की तबाही का इज़ाला क्या है