जानी आज की शब कुछ ऐसी नींद सुला दो मुझ को कि कल सुब्ह जब आँख खुले तो मौत की सरहद पार हुई हो इक ऐसा जाम पिला दो मुझ को कि कल सुब्ह जब आँख खुले तो मेरा नफ़्स तिरे शीशे से ज़्यादा साफ़ हुआ हो कुछ इस तरह से रुला दो मुझ को कि कल सुब्ह जब आँख खुले तो नूर का पहला क़तरा आँख से हो कर सारे दिल में फैल गया हो आज की शब सोने की तमन्ना कर लेने दो कल सुब्ह जब आँख खुले तो सो कर जागने वाले सब जज़्बों से दिल आज़ाद हुआ हो जानी कभी तो अपनी मन-मानी भी कर लेने दो कभी तो अपनी गोद में सो कर मर लेने दो