चीज़ अगरचे हूँ मैं नन्ही लेकिन हूँ मैं काम की कैसी आक़ा को भी मेरी ज़रूरत नौकर को भी मेरी हाजत कोई जहाँ में घर नहीं ऐसा जिस में काम नहीं है मेरा हाल सुनाती हूँ मैं अपना कान लगा कर सारा सुनना मिट्टी में से लोहा निकाला लोहे का फ़ौलाद बनाया तार फिर उस फ़ौलाद का खींचा हो गया वो तब दुबला पतला कर दिया उस को टुकड़े टुकड़े हो गए जब वो टुकड़े छोटे कल में इन टुकड़ों को डाला बन गई जब मैं सब को निकाला एक तरफ़ अब नोक है बच्चो एक तरफ़ है नाका देखो सूई जहाँ में अब कहलाई काम ज़माने भर के आई काम हर इक के तुम भी आना मानो 'जौहर' का फ़रमाना