ये जो इक नूर की हल्की सी किरन फूटी है कौन कहता है इसे सुब्ह-ए-दरख़्शाँ ऐ दोस्त मुझ को एहसास है बाक़ी है शब-ए-तार भी लेकिन ऐ दोस्त मुझे रक़्स तो कर लेने दे कम से कम नूर ने उल्टा तो है इक बार नक़ाब एक लम्हे को तो टूटा है तिलिस्म-ए-शब-ए-तार इस से साबित तो हुआ सुब्ह भी हो सकती है पर्दा-ए-ज़ुल्मत-ए-शब चाक भी हो सकता है सुब्ह-ए-काज़िब भी तो है अस्ल में दीबाचा-ए-सुब्ह सुब्ह-ए-काज़िब भी तो है सुब्ह-ए-दरख़्शाँ की नवेद एक एलान कि हंगाम-ए-विदा-ए-शब है क़ाफ़िला नूर-ए-सहर का है बहुत ही नज़दीक जल्द होने को है ख़ुर्शीद-ए-दरख़्शाँ की नुमूद