आह 'ज़ोर' साहब By Nazm << जीना तो इसी को कहते हैं अलविदाई बोसा >> क्या क़यामत है एक साथी का बीच रस्ते में साथ छूटा है ज़ोर-ए-बाज़ू थे 'ज़ोर' उर्दू के आज उर्दू का ज़ोर टूटा है कौन दुनिया से उठ गया मोहसिन किस के ग़म में ये खो गई उर्दू 'ज़ोर' साहब के एक जाने से कितनी कमज़ोर हो गई उर्दू Share on: