ये लोग मुझ को बता रहे हैं हमारी आँखें बहुत हैं रौशन ये बर्क़ जैसी चमक रहीं हैं कि जुगनूँ की तड़प रुकी हो है बे-क़रारी ग़ज़ाल जैसी ख़ुमार की सी है कैफ़ियत भी धनक के जितने भी रंग होंगे हमारी आँखों में बस गए हैं मगर ऐ जानाँ उन्हें बताऊँ मैं किस तरह से ये जगमगाती ये झिलमिलाती सी मेरी आँखें ख़ुमार से पुर ग़ज़ाल जैसी तुम्हारे ख़्वाबों के रंग ले कर अमीन हैं कितने रत-जगों की ये सुर्ख़ आँखें तलाश में जो भटक रही हैं शुआएँ रंगों की छट रही है सुनो न जानाँ ये लोग मुझ को बता रहे हैं कि मेरी आँखें बहुत है रौशन