आगरा शहर में मोहब्बत का एक मीनार जगमगाता है लोग कहते हैं जिस को ताज-महल मेरे दिल को बहुत लुभाता है रौशनी फूटती है जाली से बाग़ में फूल मुस्कुराते हैं लोग पहलू में बैठ कर उस के हाए कितना सुकून पाते हैं रूह जिस में नहीं प है ज़िंदा तुम न मानो मगर हक़ीक़त है वक़्त धुँदला न कर सका जिस को ये मोहब्बत की वो इमारत है कुर्रा-ए-अर्ज़ पर अजूबा है कैसे इंकार हो वदीअ'त से फ़ख़्र हिन्दोस्ताँ को है इस पर ताज को देखिए अक़ीदत से देखना हो कभी तो आ जाना दर्स वो किस तरह से देते हैं चाहने वाले ताज में 'बिस्मिल' अक्स-ए-महबूब देख लेते हैं