ये आवाज़ उसी तरह पीछा करेगी ज़मीं से फ़ज़ा तक फ़ज़ा से ख़ला तक तमन्नाओं की जागती दास्तानें बिखेरा करेगी ये आवाज़ तारीख़ की बे-रिया वादियों से निकलती हुई मरहला मरहला वक़्त का पीछा करती चली आई है ख़ंदा-सामाँ गुज़रती चली आई है ये आवाज़ बद-ख़ू चटानों से तर्शे दरीचों को इक अजनबी राह-रौ की तरह थपथपाया करेगी जिलौ में लिए सुब्ह की निकहतों के शरर ख़्वाब-आलूदा ज़ेहनों से खेला करेगी छुपाए कलेजे में ठंडी चिताएँ ये शिकवा करेगी कि धरती की फैली हुई गोद में नींद जादू की मानिंद पैवस्त है ये आवाज़ हर-गाम पर बे-नियाज़ाना इदराक के क़ाफ़िले को पुकारा करेगी कि सदियों की ख़्वाबीदगी की रिदा आदमी अपने चेहरे से सरका सके आँख खोले ज़बाँ काम में ला सके