ब-मुश्किल एक हैरानी को आँखों से निकाला था कि फिर इक और हैरानी ये बस्ती कैसी बस्ती है जहाँ पर मेरा हर इक ख़्वाब हैरानी की इक चादर को ओढ़ सो रहा है और तहय्युर की क़बा पहने हुए हैं अश्क सारे और यहाँ तक कि हमारे इश्क़ ने भी हिज्र के इक संग पर जो लफ़्ज़ लिक्खा है वो हैरत है वही इक लफ़्ज़ जो अब मेरे दिल के आईने से बरसर-ए-पैकार है और कौन जाने आईना बाक़ी रहेगा या हमारे इश्क़ की हैरत