तख़्लीक़ By Nazm << फिर कोई पेड़ नकुल आता है रूह-ए-आवारा >> कई दिनों से किसी बहाने दिल बहलता ही नहीं यूँ लगता है जैसे ज़ेहन के गोशे में फिर हलचल होने वाली है कोई परिंदा तोड़ के पिंजरा दूर पहुँचने वाला है शायद किसी सय्यारे पर इक दुनिया बसने वाली है Share on: