यूँ लगता है पिछले कुछ सालों से शब की सियाही गहरी हो गई है शायद एक लम्हे को दूसरा लम्हा भी नहीं सूझता ज़ी-फ़हम दानिश-वर अपने एहसास पे लगे ज़ख़्मों को माह-ओ-अंजुम बनाए किसी जदीद सूरज के तुलूअ' होने के मंज़र मा'सूम जियाले अपने ज़ख़्मों को सँभाले नए वार से बचने की तलाश में कोई किसी के दोस्ती-भरे सफ़ेद घर में बे-फ़िक्र कोई किसी के दुआओं का मुंतज़िर