मस्जिद में और मंदिर में गिरिजा-घर की ख़ामोशी से हम्द-ओ-सना के गीतों तक गुरुद्वारे की बैठक में ढोलक की हर थाप से ले कर लाट साहब के पाट तलक मौलवियों के वा'ज़ से ले कर पंडित के भजन के अंदर सहराओं में दरियाओं में इस कोने से उस कोने तक काएनात के हर गोशे में फ़र्श से ले कर अर्श के मंज़र-नामे तक दीवार-ए-गिर्या से ले कर चश्म-ए-तलब के पार तलक और ख़ला से भी उस पार जिस के लिए मैं सरगर्दां थी जिस को ढूँडा गली गली चमन चमन और कली कली वो तो मेरी शह-ए-रग में था मेरा ख़ुदा बस मेरा ख़ुदा