दरी के नीचे से निकले गर्द-ओ-ग़ुबार में मेरे क़दमों का निशान पड़ा मिला है निशान जो मैं ने पिछली किसी सदी में वक़्त की दरी के नीचे दबा दिया था दबा दिया था या तुम ने किसी नई बारयाबी के लिए बो दिया था मगर दरी के नीचे से दरयाफ़्त होने वाला निशान वक़्त पहन कर सफ़र की पाज़ेब बजाते बजाते सूखे चमड़े सा अकड़ गया है मुझे अपने पैरों पे वो निशान किसी बूढ़ी आत्मा की तरह ख़ौफ़-ज़दा कर रहा है