अपने सीने में दबाए हुए लाखों शोले शबनम ओ बर्फ़ के नग़्मात सुनाए मैं ने ज़ीस्त के नौहा-ए-पैहम से चुरा कर आँखें गीत जो गा न सके कोई वो गाए मैं ने आज तश्बीह-ओ-किनायात का दिल टूट गया आज मैं जो भी कहूँगा वो हक़ीक़त होगी आँच लहराएगी हर बूँद से पैमाने की मेरे साए को मिरी शक्ल से वहशत होगी ग़म-ए-दौराँ ने ग़म-ए-दिल का सुकूँ छीन लिया अब तिरे प्यार में भी प्यार के अंदाज़ नहीं शौक़ के क़िल'अ-ए-तारीक में है सन्नाटा कोई आवाज़ नहीं कोई भी आवाज़ नहीं कैसे समझाऊँ कि उल्फ़त ही नहीं हासिल-ए-उम्र हासिल-ए-उम्र इस उल्फ़त का मुदावा भी तो है ज़िंदगी हसरत-ए-ख़स-ख़ाना-ओ-बर्फ़ाब सही कुछ दहकते हुए शोलों की तमन्ना भी तो है तू मिरा ख़्वाब है आदर्श है लेकिन मुझ को तेरे इस क़स्र-ए-तरब-नाक से जाना होगा आग और ख़ून उगलते हुए सय्यारे को फिर तिरा क़स्र-ए-तरब-नाक बनाना होगा