मैं वही क़तरा-ए-बे-बहर वही दश्त-ए-नवर्द अपने काँधों पे उठाए हुए सहरा का तिलिस्म अपने सीने में छुपाए हुए सैलाब का दर्द टूट कर रिश्ता-ए-तस्बीह से आ निकला हूँ दिल की धड़कन में दबाए हुए आमाल की फ़र्द मेरे दामन में बरसते हुए लम्हों का ख़रोश मेरी पलकों पे बगूलों की उड़ाई हुई गर्द लाख लहरों से उठा है मिरी फ़ितरत का ख़मीर लाख क़ुल्ज़ुम मिरे सीने में दवाँ रहते हैं दिन को किरनें मिरे अफ़्कार का मुँह धोती हैं शब को तारे मिरी जानिब निगराँ रहते हैं मेरे माथे पे झलकता है नदामत बन कर इब्न-ए-मरयम का वो जल्वा जो कलीसा में नहीं रांदा-ए-मौज भी हैं मुजरिम-ए-ज़र्रात भी हैं मेरा क़िस्सा किसी अफ़साना-ए-दरिया में नहीं मेरी तारीख़ किसी सफ़्हा-ए-सहरा में नहीं