जिस किसी ने इन दिनों कोई दवा ईजाद की बस ये समझो उस ने इक बस्ती नई आबाद की फोड़ कर सर जेल में बे-चारा मजनूँ मर गया और सदाएँ हर तरफ़ हैं यार ज़िंदाबाद की क्या बताऊँ ऐ तबीबो इश्क़ की तुम को तपिश बस समझ लो जैसे गर्मी तीर और ख़ुर्दाद की लीजिए आए हैं मजनूँ मुझ को देने दर्स-ए-इश्क़ आप की सूरत तो देखो हत तिरे उस्ताद की क़र्ज़ तो बे-शक लिया पर हम ने किस किस से लिया याद कुछ आता नहीं ये कैफ़ियत है याद की क़ैस आख़िर मर गया सोज़-ए-दरून-ए-इश्क़ से खा गई अफ़्सोस उस पौदे को गर्मी खाद की देखना आख़िर सर-ए-बाज़ार रुस्वा कर दिया रोज़ वाइ'ज़ तुम दुआ माँगा करो औलाद की मादर-ए-गीती ने 'इस्मत' कुछ मिरी परवा न की सास करती है ख़ुशामद कहते हैं दामाद की