ख़िरमन-ए-एहसास पर बिजली गिराते जाइए इश्क़ के बेदार शो'लों को बुझाते जाइए जिस ने बख़्शा था ज़मीर-ए-रूह को राज़-ए-हयात हाँ उसी अंदाज़ से फिर गुनगुनाते जाइए बारिश-ए-ग़महा-ए-पैहम से फ़ज़ा है सोगवार आप जाते हैं तो दम भर मुस्कुराते जाइए इश्क़ के सीने में मद्धम हो रही है रौशनी इक ज़रा इस शम्अ' की लौ को बढ़ाते जाइए खा रहा हूँ फिर फ़रेब-ए-काएनात-ए-रंग-ओ-बू ये नक़ाब-ए-वहम आँखों से उठाते जाइए