मिरी दस्तरस में सितारे भी सूरज भी और कहकशाँ भी मिरी दस्तरस में हवाएँ भी तूफ़ान भी बिजलियाँ भी मिरी दस्तरस में समुंदर भी सहरा भी कोहसार भी गुल्सिताँ भी मिरी दस्तरस में बहारें भी मौसम भी क़ौस-ए-क़ुज़ह भी मिरी दस्तरस में गुलों की महक भी है कलियों की रानाइयाँ भी मिरी दस्तरस में नम-आलूद होंटों की दोशीज़गी भी जवाँ मरमरीं जिस्म की तिश्नगी भी मिरी दस्तरस में तमन्नाओं के मरहले भी शब-ए-वस्ल के सिलसिले भी मिरी दस्तरस में अज़ाएम भी जुरअत भी ईक़ान भी हौसले भी मगर मुझ सा महरूम भी कोई होगा हर इक शय मिरी दस्तरस में मगर मेरे हाथों में जुम्बिश की ताक़त नहीं है अगर वो न चाहे यही मेरे इंसान होने का तारीक पहलू है शायद