तर्क-ए-वादा कि तर्क-ए-ख़्वाब था वो काम सब हो चुका जो करना था भर चुका जाम-ए-शर्त-ए-वस्ल जिसे सुब्ह तक, आँसुओं से भरना था वो सुख़न उस के मुद्दआ में नहीं मुझ को जिस बात से मुकरना था कोई तक़सीम-ए-कार-ए-महर-ओ-नुजूम या हिसाब-ए-शब-ए-नुज़ूल कोई दश्त-ए-ला-हासिली की महदूदात शहर-ए-महरम का अर्ज़ ओ तूल कोई कुछ नहीं दरमियाँ जज़ा न सज़ा संग, दुश्नाम, दाग़, फूल कोई उस तरफ़ अब रुख़-ए-तअल्लुक़ है जहाँ सूद-ओ-ज़ियान-ए-ज़ात नहीं डर नहीं नींद टूट जाने का पास-ए-वादा की एहतियात नहीं मुझ को जिस बात से मुकरना था उस के दावे में अब वो बात नहीं भर चुका जाम-ए-शर्त-ए-वस्ल जिसे सुब्ह तक, आँसुओं से भरना था तर्क-ए-वादा कि तर्क-ए-ख़्वाब था वो काम सब हो चुका जो करना था