उस कमरे की तरतीब से मैं मानूस था उस की हर शय से पत्थर से दीवारों से छोटी छोटी चीज़ों और किताबों से मुतरन्निम आवाज़ों से शोर मचाते हँसते-गाते गाहे-गाहे लम्हा-भर को चुप हो जाते अपने अपने आसमाँ से तन्हाई में सुख और दुख की बातें करते लोगों से नन्ही-मुन्नी सरगोशी में जादू भरती गुड़िया से रंग लुटाते उस के नट-खट गुड्डे से तुम तो मेरे अपने थे तुम ने ये क्या कर डाला तुम ने अपने हाथ से मेरी बरसों की मानूस लकीरें दरहम-बरहम कर डालें आवाज़ों की रागनियों की तस्वीरों की रौशन आँखें तुम तो मेरे अपने थे तुम ने ये क्या कर डाला