आ'ज़ा का तनासुब रगों में दौड़ते ज़िंदा जवाँ सरशार ख़ूँ की गुनगुनाहट हमें देते हैं दावत इश्क़ की लेकिन हमारी चश्म-ए-आहन-पोश पैराहन-शनासा है लिबासों की मोहब्बत वज़्-ए-पैराहन को सब कुछ मान कर ना-बीना आँखें इश्क़ करती हैं हमारी ज़िंदगी तहज़ीब-ए-पैराहन है ज़ाहिर की परस्तिश है हमारे सारे आदाब-ए-नज़ारा फ़र्ज़ कर लेते हैं इंसाँ बे-बदन है बदन दर-अस्ल इंसाँ है तमद्दुन है मोहब्बत है बदन ही रूह है नूर-ए-हरारत ज़िंदगी है बदन ही का करिश्मा ज़ेहन की तख़्लीक़ तस्ख़ीर-ए-फुलाँ है हमारी चश्म-ए-आहन-पोश पैराहन शनासा है बदन की ताब ला सकती नहीं तहज़ीब-ए-पैराहन न ज़िंदा है न ज़ेहन-ओ-रूह रखती है हमारे बूढ़े कोहना और फ़र्सूदा लिबासों से इबारत हैं हमारे नौजवाँ मग़रिब के ताज़ा फैशनों के चलते फिरते इश्तिहारी हैं बदन मादूम है और बे-बदन रूहें धुआँ हैं बे-बदन अज़हान आसेब-ए-नज़ारा हैं