तेशा-ए-कर्ब कंधों पे रक्खे हुए कोहकन बे-अमाँ फिर रहे हैं यहाँ ख़्वाहिशों के दिए सब धुआँ हो गए वो जो माज़ी के चमकीले औराक़ थे उन पे लिक्खे हुए गीत गुम हो गए ख़्वाब की बस्तियों में कोई सर-फिरा अपनी पलकों से तक़दीर गढ़ता रहा और तारीकियाँ मुँह छुपाए हुए हाल-ए-रफ़्ता पे आँसू बहाती रहीं पस्तियों के सफ़र से पलटते हुए धूल उड़ाते हुए रथ परेशान हैं यूँ बुलंदी से ख़ाइफ़ भला क्यूँ हुए ये मुसाफ़िर सभी ऑक्सीजन से दम उन का घुटता है क्यूँ