थकन की एक शाम By Nazm << अम्न की मंज़िल के राही दिलीप-कुमार >> काम कितने अधूरे पड़े थे और रौशनी कम से कम हो रही थी मुझे यूँ लगा मेरी पेशानी हल्के पसीने से नम हो रही थी ऐसे में तुम ने मिरी माँग को चूम कर मुझ से सरगोशियों में कहा जान अफ़्शाँ जबीं पर उतर आई है या सितारों ने बोसा दिया है बताओ भला अब कहाँ की थकन Share on: