नज़र से आज जो गुज़री हैं चंद तस्वीरें वो दिल पे नक़्श हैं जैसे लहू की तहरीरें बसी है जंग-ए-सिरंगा-पटाम आँखों में किसी शहीद पे साया किए हैं शमशीरें ग़ुलाम क़ौम तुझे कुछ हया भी आती है हैं तेरे चाँद ये ख़ाक-अफ़गनी की तदबीरें तिरा चराग़ सर-ए-शाम बुझ गया लेकिन सहर के भेस में फैलेंगी उस की तनवीरें मिरे शहीद तिरे नाम-ए-पाक से क़ौमें करेंगी आया-ए-हुब्ब-ए-वतन की तफ़्सीरें पयाम-ए-सई-ए-सर-अफ़राज़ी-ए-वतन है तू शहीद-ओ-ग़ाज़ी-ओ-जर्रार-ओ-सफ़-शिकन है तू सियासत-ए-वतनी की फ़ज़ा थी ज़हर-आलूद हवा-ए-ग़र्ब थी ना-साज़गार-ओ-ना-मसऊद सबाह-ए-दौलत-ए-तैमूरिया की आई थी शाम पड़ा था नय्यर-ए-इक़बाल-ए-हिन्द सर-ब-सुजूद गुलों को लोरियाँ देता था ए'तिबार-ए-बहार चमन में सब्ज़ा-ए-बेगाना पा रहा था नुमूद है तेरे बा'द तिरी याद इफ़्तिख़ार-ए-वतन तिरा मज़ार है शम-ए-सर-ए-मज़ार-ए-वतन पुकारती हैं सिरंगा-पटम की दीवारें कि हम को याद हैं वो गोलियों की बौछारें दहन कुशादा हैं चोटों के घाव क्या मा'लूम ये कब हमीयत-ए-हुब्ब-ए-वतन को ललकारें शहीद-ए-ज़िंदा-ए-जावेद हैं वही सावंत जो नाम-ए-पाक-ए-वतन पर लड़ें मरें मारें इस एक जान-ए-गिरामी पे लाख जाँ सदक़े इस एक मौत पे सौ उम्र-ए-जावेदाँ सदक़े