किसी दिन जब थकन से चूर हो कर आऊँगी फिर मैं तिरे दर पर तिरे शाने पे सर रख कर मैं सब रंज-ओ-अलम अपने मैं अपनी सारी मजबूरी मैं अपनी सारी महरूमी फिर अश्कों को बहाऊंगी वो मेरा दर्द दुख सारा रगों में लावा बन कर जो उबलता है तू मेरा साईं है और शाह मेरा है मैं लफ़्ज़ों की भिकारन हूँ ये कासा ख़ाली है मेरा मुझे ख़ैरात लफ़्ज़ों की मिरे साईं ज़रा देना मिरे कासे को भर देना