तुम किस से मिलने आए हो किस चेहरे से काम है तुम को किन आँखों से बात करोगे तुम जो चेहरा देख रहे हो उस में हैं कितने ही चेहरे जिन को लगाए मैं फिरता हूँ तुम किस से मिलना चाहोगे उस शाइर से जिस को तुम ने देखा है स्टेज पे अक्सर सब को भूले ख़ुद को भुलाए बदमस्तों का भेस बनाए जिस ने फ़लक पर हुक्म चलाए संग-ए-मलामत जिस पर आए महफ़िल की महफ़िल झूम उट्ठी जिस ने ऐसे शेर सुनाए तुम किस से मिलने आए हो उस लम्बे गोरे चेहरे से जिस पर आग के फूल खिले हैं जो इक सीधे क़दम को सँभाले दिल में सैकड़ों ज़ख़्म छुपाए अपनी अना की लाश उठाए कम-ज़र्फ़ों की इस दुनिया में कितने युगों से सरगर्दां है तुम किस से मिलने आए हो उस इंसाँ से जिस के अंदर एक क़ातिल ज़ानी सारिक़ के तीनों चेहरे एक हुए हैं लेकिन उस के हाथ बंधे हैं पैरों में ज़ंजीरें पड़ी हैं और वो क़ातिल अब बुज़दिल है और वो ज़ानी अब शौहर है और वो सारिक़ अब मुंसिफ़ है तुम किस से मिलने आए हो मैं ख़ुद अपने आप से मिल कर पहरों सोच में पड़ जाता हूँ किस चेहरे से बात करूँ