अब मैं हर शाम बाग़ में जा कर तुम से छुप-छुप के मिल नहीं सकती क्यूँकि कहते हैं लोग ये मुझ से मैं हूँ अब मंज़िल-ए-जवानी में पहले कम-उम्र थी जवान न थी पहले मुझ को किसी का ख़ौफ़ न था अब मैं डरती हूँ अह्ल-ए-दुनिया से इस लिए तुम से मिल नहीं सकती तुम मिरा इंतिज़ार मत करना